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वाह क्या कलाकारी है ? शख्स ने मुर्गे के पंखों से बना दिए कपड़े और कागज़, मिले अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

जयपुर के राधेश अग्रहरी ने मुर्गे के पंखों से कपड़े और कागज बनाने की तकनीक विकसित की है। इस पहल से पर्यावरण संरक्षण, रोजगार सृजन और कचरे के पुनः उपयोग में योगदान मिल रहा है।

वाह क्या कलाकारी है ? शख्स ने मुर्गे के पंखों से बना दिए कपड़े और कागज़, मिले अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

खेत तक, 12 सितंबर 2024, जयपुर: भारत में अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक अनोखी पहल देखने को मिली है। जयपुर के राधेश अग्रहरी ने मुर्गे और मुर्गियों के पंखों से कपड़े और कागज बनाने की तकनीक विकसित की है, जो न केवल बूचड़ वेस्ट से निजात दिला रही है, बल्कि आदिवासी महिलाओं को रोजगार भी प्रदान कर रही है।भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान में रिसर्च के दौरान राधेश अग्रहरी को कचरे से नया सामान बनाने का प्रोजेक्ट मिला। उन्होंने चिकन वेस्ट पर शोध किया और लंबे समय की रिसर्च के बाद चिकन फाइबर से कपड़ा और पेपर बनाने की शुरुआत की।

राधेश ने पुणे में कूड़ा उठाने वालों को प्रशिक्षण दिया और मुर्गे के पंखों को इकट्ठा करके सफाई प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद, राजस्थान के आदिवासी इलाकों में महिलाओं को प्रशिक्षण देकर कपड़े, बैग, पर्स, कंबल, पेंसिल, और कॉपी जैसे उत्पाद बनाए गए। चिकन वेस्ट को सैनिटाइज कर उपयोग में लाया जाता है। 1 किलो चिकन वेस्ट से 1 किलो पेपर तैयार किया जा सकता है, जबकि सामान्य पेपर बनाने में 3 किलो लकड़ी और 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया से हजारों पेड़ों की कटाई रोकी जा रही है।

इस पहल ने 150 कूड़ा उठाने वालों और 1200 से ज्यादा आदिवासी महिलाओं को रोजगार प्रदान किया है। चिकन फाइबर का 27 तरीकों से सैनिटाइजेशन किया जाता है और इसके बाद विभिन्न उत्पाद बनाए जाते हैं, जो किसी भी रसायन के बिना तैयार किए जाते हैं। राधेश अग्रहरी ने बताया कि मुर्गे के कचरे पर काम करना आसान नहीं था, खासकर तब जब परिवार के सदस्य इस विचार के खिलाफ थे। उन्होंने 15 हजार रुपये के शुरुआती निवेश से शुरुआत की, और आज उनके स्टार्टअप का टर्नओवर करोड़ों में है।

इस अनूठी पहल को 25 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। राधेश का मानना है कि सरकार को इस दिशा में कदम उठाने चाहिए ताकि बूचड़ वेस्ट से निपटने में मदद मिल सके।

Sandeep Verma

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