कृषि समाचारवायरल

धान की फसल में शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग की पहचान: लक्षण, प्रभाव और बचाव के उपाय

Learn how to identify and control sheath blight and khandwa disease in paddy crops. Expert advice on symptoms, effects, and preventive measures to protect your yield.

धान की फसल में शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग की पहचान: लक्षण, प्रभाव और बचाव के उपाय

शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग धान की फसल के लिए गंभीर खतरे हैं, जानें इन बीमारियों के लक्षण और बचाव के उपाय

Khet Tak, New Delhi, 13 September: धान की खेती भारत में सबसे महत्वपूर्ण कृषि गतिविधियों में से एक है, लेकिन मानसून के दौरान यह कई बीमारियों का सामना कर सकती है। इनमें से प्रमुख बीमारियां हैं शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग। इन बीमारियों के कारण फसल को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है, जिससे किसान को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है। इस आर्टिकल में हम आपको इन बीमारियों के लक्षण, प्रभाव और बचाव के तरीकों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग के लक्षण

शीथ ब्लाइट रोग:
यह बीमारी मुख्यतः धान के पौधों के तनों पर सफेद धब्बों के रूप में नजर आती है। शीथ ब्लाइट का प्रभाव पौधे के निचले हिस्से से शुरू होता है और धीरे-धीरे ऊपर की ओर फैलता है। यह फसल के विकास को प्रभावित करता है और पौधों को कमजोर कर देता है, जिससे उपज कम हो जाती है।

कंडवा (कोयली) रोग:
कंडवा रोग के लक्षण धान की बालियों पर नजर आते हैं। इसमें धान के दाने काले हो जाते हैं और बाली काली दिखाई देती है। इससे फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है और उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। यह रोग विशेष रूप से मानसून के दौरान सक्रिय होता है।

इन बीमारियों से बचाव के उपाय

कृषि विज्ञान केंद्र गंधार के कीट रोग विशेषज्ञ, डॉ. वाजिद हसन के अनुसार, शीथ ब्लाइट और कंडवा रोग से बचने के लिए उचित दवाओं और समय पर कीटनाशक का छिड़काव जरूरी है।

शीथ ब्लाइट रोग से बचाव:
इस बीमारी से बचने के लिए किसानों को पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखनी चाहिए, जिससे पौधों में हवा का उचित संचार हो सके। इसके अलावा, नाइट्रोजन खाद का उपयोग संतुलित मात्रा में करें, क्योंकि अधिक मात्रा में नाइट्रोजन का प्रयोग शीथ ब्लाइट को बढ़ावा दे सकता है।

कंडवा रोग से बचाव:
कंडवा रोग को नियंत्रित करने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP और प्रॉपिकोनाजोल 30 EC का मिश्रण स्प्रे करें। पहली बार स्प्रे उस समय करें जब धान की बाली निकल रही हो और दूसरी बार 10 दिन बाद करें, जब बाली में दूध और दाने बैठने लगें।

इसके अलावा, फसल पर गंदीबग कीड़े का प्रभाव भी देखा जा सकता है, जो धान की बालियों का दूध चूसकर उन्हें खोखला बना देता है। इसे खखरी रोग के रूप में जाना जाता है। गंदीबग की पहचान सफेद कपड़े की ओसाई से की जा सकती है। यह तकनीक किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित होती है।

विशेषज्ञ की सलाह

डॉ. वाजिद हसन का कहना है कि किसानों को फसल के विकास के हर चरण पर ध्यान देना चाहिए और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, फसल की बाली में दूध आने के समय खासतौर पर सतर्क रहना चाहिए, ताकि गंदीबग की समस्या को समय रहते नियंत्रित किया जा सके। मानसून के मौसम में फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए उचित खाद का उपयोग भी जरूरी है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button