धान की फसल में पीलापन? NPK 00:00:50 से पाएं चमकदार बाली और वजनदार दाने
धान की पत्तियों में पीलापन की समस्या से निपटने के लिए जानें सही उर्वरक का उपयोग कैसे करें और पाएँ बेहतरीन फसल।
धान की फसल में पीलापन? NPK 00:00:50 से पाएं चमकदार बाली और वजनदार दाने
धान की पत्तियों में पीलापन की समस्या से निपटने के लिए जानें सही उर्वरक का उपयोग कैसे करें और पाएँ बेहतरीन फसल।
Khet Tak, 11 September, धान की फसल में यदि पत्तियों में पीलापन नजर आ रहा है, तो यह संकेत हो सकता है कि पौधों को पोषक तत्वों की कमी हो रही है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या का समाधान सही उर्वरक के उपयोग से किया जा सकता है। कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर के कृषि विशेषज्ञ डॉ. एनपी गुप्ता के अनुसार, NPK 00:00:50 उर्वरक का छिड़काव इस समस्या को दूर करने में मदद कर सकता है।
फसलों में उर्वरक
उर्वरक फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं, जो पौधों की वृद्धि और फसल की गुणवत्ता में सुधार करते हैं। लेकिन, नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। अधिक नाइट्रोजन से धान की पत्तियां हरी-भरी तो लगती हैं, लेकिन जड़ों की मजबूती में कमी आ जाती है और पौधों की वृद्धि रुक सकती है। इसके अतिरिक्त, ज्यादा नाइट्रोजन से दाने छोटे और कम बनते हैं, और पौधे फफूंद और कीड़ों के हमलों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
समय पर उर्वरक का उपयोग
डॉ. गुप्ता ने Local18 को बताया कि यदि धान की फसल 55 से 60 दिन पुरानी हो गई है, तो नाइट्रोजन का उपयोग न करें। इसके बजाय, एनपीके 19:19:19 उर्वरक का उपयोग करें, जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश शामिल हैं। इसे 200 लीटर पानी में एक से दो किलोग्राम घोल कर एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव करें। इससे पत्तियों का पीलापन दूर होगा और बाली में चमक आएगी।
NPK 00:00:50 का उपयोग
NPK 00:00:50 उर्वरक, जिसमें 50% पोटाश होती है, भी एक प्रभावी विकल्प हो सकता है। इसे 100 लीटर पानी में एक से दो किलोग्राम घोलकर छिड़काव करें। इससे दानों का वजन बढ़ेगा, चमक में वृद्धि होगी, और रोगों से बचाव होगा। इस तरीके से फसल की लागत कम होगी और उत्पादन में सुधार होगा।
सुझाव और जानकारी
यह आवश्यक है कि किसान सही समय पर और सही मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें ताकि फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार हो सके। सही उर्वरक का चयन और समय पर छिड़काव से धान की फसल में पोषक तत्वों की कमी दूर की जा सकती है और फसल की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है।