Berseem ki kheti: किसानों को बरसीम घास की खेती से होगा दोहरा लाभ, मवेशियों का बढ़ेगा दूध, कमाई होगी चार गुना
इसमें मौजूद पोषक तत्व गाय और भैंस के लिए अत्यधिक फायदेमंद होते हैं, जिससे दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में सुधार आता है।
Berseem ki kheti: किसानों को बरसीम घास की खेती से होगा दोहरा लाभ, मवेशियों का बढ़ेगा दूध, कमाई होगी चार गुना
भारत में कई किसान न सिर्फ खेती करते हैं, बल्कि गाय-भैंस पालन भी करते हैं। दूध से होने वाली आमदनी में इजाफा तभी मुमकिन है जब मवेशियों को पौष्टिक आहार मिले। बरसीम (Berseem) एक ऐसा हरा चारा है, जो मवेशियों की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए मशहूर है। इसमें मौजूद पोषक तत्व गाय और भैंस के लिए अत्यधिक फायदेमंद होते हैं, जिससे दूध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में सुधार आता है।
बरसीम की खेती के लिए मिट्टी कैसी हो
बरसीम घास की खेती के लिए उत्तरी और पूर्वी भारत में धान या मक्का के बाद का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इसकी सफल खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। बरसीम की बुवाई के लिए नियम
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। 2-3 बार हल चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। खेत को 4×5 मीटर की क्यारियों में विभाजित कर लें।
बरसीम की प्रमुख प्रजातियां
वरदान
मेस्कावी
बुंदेलखण्ड बरसीन-2
बुंदेलखण्ड बरसीन-3
बुवाई का समय और विधि
बरसीम की बुवाई का सही समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक होता है। देर से बुवाई करने पर चारे की उपज कम हो जाती है। बुवाई का तरीका
शुरुवात से पहले क्यारी में 5 सेमी गहरा पानी भरें। पानी के ऊपर बीज छिड़क दें।
24 घंटे बाद क्यारी से पानी निकाल दें।
यदि खेत में धान की कटाई देर से हो रही हो, तो बरसीम की उतेरा विधि से बुवाई करें। प्रति हेक्टेयर 25-30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।
सिंचाई की प्रक्रिया
सिंचाई बरसीम की खेती में एक महत्वपूर्ण चरण है। पहली सिंचाई बीज अंकुरण के तुरंत बाद करें। पहली 2-3 सिंचाइयों के बीच एक सप्ताह का अंतर रखें। फरवरी के अंत तक 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
मार्च से मई के बीच हर 10 दिन पर सिंचाई आवश्यक होती है।
हर कटाई के बाद सिंचाई जरूरी है।
बरसीम की उपज
बरसीम की एक हेक्टेयर खेती से प्रति वर्ष 80-100 टन हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। 2-3 कटाई के बाद, प्रति हेक्टेयर 2-3 क्विंटल बीज और 40-50 टन अतिरिक्त चारा भी मिल सकता है।