अगर आप ऑर्गेनिक तरीके से सब्जियों की खेती कर सकते है तो, 60 दिनों में ही हो जाएगी लाखों में कमाई, रोग का भी नहीं रहेगा खतरा
ऑर्गेनिक तरीके से तोरई, लौकी और भिंडी की खेती से किसान 60 दिनों में लाखों की कमाई कर सकते हैं। जानें कैसे मचान और मल्च विधि से रोग का खतरा कम किया जा सकता है और फसल की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।
अगर आप ऑर्गेनिक तरीके से सब्जियों की खेती कर सकते है तो, 60 दिनों में ही हो जाएगी लाखों में कमाई, रोग का भी नहीं रहेगा खतरा
खेत तक, न्यू दिल्ली, 13 सितम्बर, किसानों के लिए अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ ऑर्गेनिक विधि से सब्जियों की खेती एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभर रही है। कम समय, कम लागत और अच्छा मुनाफा कमाने के लिए किसान तेजी से तोरई, लौकी और भिंडी जैसी सब्जियों की खेती को अपना रहे हैं। बाराबंकी जिले के नवाबगंज क्षेत्र के किसान कुलदीप सिंह इस ऑर्गेनिक खेती से लाखों रुपये कमा रहे हैं और अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं।
ऑर्गेनिक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे फसलें पूरी तरह से केमिकल मुक्त होती हैं। कुलदीप सिंह ने बताया कि उनकी ऑर्गेनिक सब्जियों की बाजार में अच्छी मांग है। वे मुख्य रूप से तोरई, लौकी, और भिंडी की खेती कर रहे हैं, जिसे मचान विधि और मल्च विधि से किया जाता है। इन विधियों से फसलें न केवल तेजी से बढ़ती हैं बल्कि रोगों का खतरा भी काफी कम रहता है।
60 दिनों में होगी फसल तैयार
ऑर्गेनिक विधि से तोरई, लौकी और भिंडी की खेती में 60 से 70 दिनों में फसल तैयार हो जाती है। इस दौरान किसान को फसल की नियमित सिंचाई और देखभाल करनी होती है। इसके बाद फसल को तोड़कर सीधे बाजारों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
कुलदीप सिंह ने बताया कि एक बीघे में खेती करने की लागत करीब 10,000 रुपये आती है, जबकि एक फसल से डेढ़ से दो लाख रुपये का मुनाफा हो जाता है।
मचान विधि और मल्च विधि की खेती
इस विधि में सबसे पहले खेत की जुताई की जाती है और फिर बेड तैयार किए जाते हैं। इसके बाद खेत में पन्नी बिछाकर बीजों की बुवाई की जाती है। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तब उनकी सिंचाई की जाती है। इसके बाद बांस, तार और डोरी से स्टेचर तैयार किया जाता है, जिस पर पौधों को चढ़ा दिया जाता है। इससे फसलें बेहतर तरीके से बढ़ती हैं और फल अच्छी गुणवत्ता के होते हैं।
ऑर्गेनिक खेती में मचान और मल्च विधि का उपयोग करने से तोरई, लौकी, और भिंडी जैसी सब्जियों में रोग लगने का खतरा बहुत कम हो जाता है, जिससे किसान बिना किसी चिंता के अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।