ग्वार फसल में झुलसा रोग का अटैक: झुलसा रोग की पहचान कर किसान भाई ऐसे करे समाधान
Attack of blight disease of guar crop: Farmer brothers should identify the blight disease and solve it like this.
ग्वार फसल में झुलसा रोग का अटैक: झुलसा रोग की पहचान कर किसान भाई ऐसे करे समाधान
खेत तक, नई दिल्ली, 9 सितंबर, किसान भाईयो ग्वार की फसल में झुलसा रोग एक गंभीर समस्या है। ग्वार की फसल में यह समस्या बैक्टीरिया के कारण होती है। इस रोग का सही समय पर पहचान करना बहुत ही जरूरी होता है। अगर इसका सही समय पर पहचान कर समाधान नही किया गया तो यह ग्वार के उत्पादन में भारी गिरावट उत्पन्न कर सकती है। इस लेख में हम झुलसा रोग के लक्षणों की पहचान और इलाज के बारे में विस्तार से जानेंगे ताकि किसान इस समस्या से निजात पा सकें और अपनी फसल की अच्छी पैदावार ले सकें।
झुलसा रोग के लक्षण क्या होते है?
किसान भाईयो झुलसा रोग का प्रकोप कई प्रकार के लक्षणों के साथ देखा जा सकता है। इनमें से प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
पत्तियों का पलटना: झुलसा रोग से पत्तियों की सतह पर काले और सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। यह पत्तियों के पलटने का कारण बनता है।
कोपलों का मुरझाना: रोग के कारण नए कोपले मुरझा जाते हैं और सूखने लगते हैं।
पत्तियों पर धब्बे: पत्तियों पर गहरे काले और सफेद धब्बे बनने लगते हैं। यह धब्बे गीलापन के कारण अधिक स्पष्ट हो जाते हैं।
तरल पदार्थ का रिसाव : प्रभावित पत्तियों से तरल पदार्थ रिसने लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में बैक्टीरिया होते हैं।
पत्तियों का सुखना और गिरना: पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और पौधे पर तरल पदार्थ रिसता है।
झुलसा रोग को रोकने का उपाय क्या हैं?
किसान भाईयो झुलसा रोग से बचाव और इलाज के लिए निम्नलिखित तरीके है जो निचे विस्तार से दिए गए है-
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और कॉपर ऑक्साइड का उपयोग:
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन: 500 ग्राम प्रति 150-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
कॉपर ऑक्साइड (कोक 50ः) : 500 ग्राम प्रति 150-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
स्प्रे का समय: दवाइयों का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर किया जा सकता है।
ध्यान देने योग्य बातें
मौसम की स्थिति : झुलसा रोग अधिक वर्षा और गीले मौसम में तेजी से फैलता है। इसलिए, फसल पर नजर रखें और मौसम के अनुसार स्प्रे करें।
फसल की देखभाल : रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार करें ताकि फसल पर अधिक नुकसान न हो।
प्रभावित हिस्सों का नष्ट करना : प्रभावित पत्तियों और कोपलों को हटा दें ताकि रोग फैलने की संभावना कम हो सके।